Through the Regrets and Happiness passes Maine Jis Badnaseeb Ko Chaha and leaves you into an oblivion of self assessment.
Shayari : Maine Jis Badnaseeb Ko Chaha
Poet : #NauushadMuntazir
Reciter : #NauushadMuntazir
इक उम्र ग़ुज़र गई तेरी, तू चाँद सी हसीं रही;
तुझपर ख़ुदा की नयमतें, तू ख़ुद चाँदनी रही।
इश्क़-ए-तिश्नगी मेरा हुनर, जिसपर मुझे ग़ुरूर है;
मैंने जिस बदनसीब को चाहा, उसे ख़बर नहीं रही।
कुछ उजड़ गए, हुए फना, कुछ का नहीं मिला निशां;
तू उनकी बर्बादी की दास्तां, आँखों में कब नमीं रही।
जुनूं-ए-इश्क़ के दर्द में हैं क्या-क्या लज़्जतें “मुन्तज़िर”;
दर्द का इल्म क्या जिसे चाहने वालों की कब कमी रही।
-NauushadMuntazir
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