Life hits you exactly where you are most confident about. Anjaam ki Kya Baat Karein elaborates the Love, Commitments, Togetherness and Emotions with a Zilch at the end.
Shayari/ Ghazal : Anjaam Ki Kya Baat Karein
Poet : #NauushadMuntazir
Reciter : #NauushadMuntazir
अहद-ए-वफ़ा नहीं उनको मुलाक़ातों की इन्तेहां याद नहीं;
अंजाम की क्या बात करें जिनको आग़ाज़-ए-वफ़ा याद नहीं।
जिस भंवर में डूबी थी बेसहारा वादों की कश्ती हमारी;
दरिया याद है मगर उनको साहिल का पता याद नहीं।
धुंनधला चुकी हैं मोहब्बत की यादें इस क़दर;
किसने करी जफ़ा और किसने वफ़ा याद नहीं।
याद है हमको उन पेचीदा गलियों का पता लेकिन;
कौन था चिलमन के उस पार उसका पता याद नहीं।
ख़्वाब हमने भी देखा था इक मुक़म्मल मोहब्बत का;
सितारों को रात याद है मगर चांद की रज़ा याद नहीं।
बिखर जाने को मन्नतों से क़ाफ़िला निकला था मेरा;
हमको याद है हर चहरा, मंज़िल की ख़ता याद नहीं।
ग़ुज़रते वक़्त ने मायूस मरासिम को यूँ करवटें दीं हैं;
उन्हें हम याद हैं और हमें अब वो अदा याद नहीं।
शिक़वा किससे करें, किस बात का कब तक करें नादां;
कुछ वो भूल चुके हैं और कुछ हमें भूला याद नहीं।
मुनासिब ही नहीं पराई बहारों से हम कोई वास्ता रखें;
गुलिस्तां को गुल याद है, आतिश-ए-गुल को दास्तां याद नहीं।
हुई कुछ यूं बसर बर्बाद ख़्वाबों और हक़ीक़तों के दर्मियां;
हमको सितमगर याद है, खंजर को हमारा चहरा याद नहीं।
अपनी बदनसीबी की भी इंन्तेहाँ ज़रा देखो तो “मुन्तज़िर”;
उन्हें दुआ याद है मगर हमको तासीर-ए-दुआ याद नहीं।
-नौशाद मुन्तज़िर/ نائساد منتظر ®
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